इस दिन गायों को स्नान कराएं। तिलक करके पूजन करें व गोग्रास दें। गायों को अनुकूल हो ऐसे खाद्य पदार्थ खिलाएं, सात परिक्रमा व प्रार्थना करें तथा गाय की चरणरज सिर पर लगाएं। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं एवं सौभाग्य की वृद्धि होती है। देशभर में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े उल्लास से मनाया जाता है। विशेषकर गौशालाओं के लिए यह बड़े महत्व का उत्सव है। इस दिन गौशालाओं में एक मेला जैसा लग जाता है। गौ कीर्तन यात्राएं निकाली जाती हैं। यह घर-घर व गांव-गांव में मनाया जाने वाला उत्सव है। कार्तिक शुक्ल अष्टमी यानी सोमवार सुबह गायों को स्नान कराएं। इसके बाद उनको पुष्प, अक्षत, गंध आदि से विधि पूर्वक पूजा करें। फिर ग्वालों को वस्त्र आदि देकर उनका भी पूजन करें। इसके बाद गायों को ग्रास दें और परिक्रमा करें। परिक्रमा करने के बाद गायों के साथ कुछ दूर जाएं। ऐसा करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गोपाष्टमी की शाम को जब गायें चरकर वापस आएं तो उनका पंचोपचार पूजन करें, उन्हें भोजन दें और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। ऐसा करने से सौभाग्य की वृद्धि होती है। अष्टमी तिथि 04 नवंबर दिन सोमवार को तडक़े 02 बजकर 56 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जिसका समापन 05 नवंबर दिन मंगलवार को सुबह 04 बजकर 57 मिनट पर हो रहा है।
गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित दिन
गौ और ग्वालों की पूजा को समर्पित गोपाष्टमी आज मनाई जा रही है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी उत्सव मनाया जाता है। गोपाष्टमी मुख्य रूप से मथुरा, ब्रज और वृंदावन क्षेत्र में मनाया जाने वाला उत्सव है। इस दिन गाय, बछड़े और ग्वालों की विशेष पूजा की जाती है। इससे मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक इंद्र के प्रकोप से गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठ अंगुली पर धारण किए रहे। अष्टमी के दिन इंद्र ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। उनका अहंकार टूट गया और वे श्रीकृष्ण के शरण में आ गए। कार्तिक शुक्ल अष्टमी को कामधेनु ने भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक किया। उस दिन भगवान श्रीकृष्ण गोविन्द कहलाए। उस दिन के बाद से ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल अष्टमी को गोपाष्टमी का उत्सव मनाया जाने लगा।
यह भी है विधान
गोपाष्टमी के दिन गायों की पूजा के साथ ही उनके पैरों के नीचे से निकलने का भी विधान है। इससे पुण्य की प्राप्ति होती है। गाय का दूध अमृत के समान होता है, वहीं उसका गोबर और मूत्र भी बहुपयोगी होता है। गोपाष्टमी उत्सव गायों के सरंक्षण से भी जुड़ा है। गाय और बछड़े को सुबह नहलाकर तैयार किया जाता है। उसका श्रृंगार किया जाता हैं, पैरों में घुंघरू बांधे जाते हैं। अन्य आभूषण पहनाएं जाते हैं। गौ माता के सींगो पर चुनड़ी बांधी जाती है। सुबह जल्दी उठकर स्नान करके गाय के चरण स्पर्श किए जाते हैं। गाय की परिक्रमा की जाती हैं। इसके बाद उन्हें चराने बाहर ले जाते है। इस दिन ग्वालों को भी दान दिया जाता हैं। कई लोग ग्वालों को नए कपड़े देकर तिलक लगाते हैं। शाम को जब गाय घर लौटती है, तब फिर उनकी पूजा की जाती है, उन्हें अच्छा भोजन दिया जाता है। खासतौर पर इस दिन गाय को हरा चारा, हरा मटर एवं गुड़ खिलाया जाता हैं। जिनके घरों में गाय नहीं होती है वे लोग गौ शाला जाकर गाय की पूजा करते है, उन्हें गंगा जल, फूल चढ़ाते है, दीपक लगाकर गुड़ खिलाते है। गौशाला में भोजन और अन्य सामान का दान भी करते है। महिलाएं कृष्ण जी की भी पूजा करती है, गाय को तिलक लगाती है। भजन किए जाते हैं। कृष्ण पूजा भी की जाती हैं।