देशी नस्ल की साहीवाल गाय का संरक्षण कैसे करें

Submitted by Shanidham Gaushala on 28 Oct, 2020

साहिवाल भारतीय उपमहाद्वीप की एक उत्तम दुधारू नस्ल है जो कि उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में अपनी दूध क्षमता के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है | इस नस्ल का निर्यात अफ़्रीकी देशों के अलवा आस्ट्रेलिया तथा श्रीलंका में भी वहाँ की स्थानीय गायों की नस्ल सुधार के लिए किया गया है | यह नस्ल चिचडों तथा अन्य बाहय परजीवियों के प्रति प्रतिरोधी होती है | यह नस्ल गर्म जलवायु को आसानी से सहन कर सकती है |
सबसे मजेदार बात यह है की इस गाय की उत्पत्ति स्थान पाकिस्तान का साहिवाल जिला है तथा भारत में यह पंजाब के पाकिस्तान की सीमा से लगते फिरोजपुर, अबोहर एवं फाजिल्का जिलों में पायी जाती है | इसको मोंटगोमरी, लोला, लम्बी बार तथा मुल्तानी इत्यादि नामों से भी जाना जाता है | 
साहीवाल गाय की शारीरिक विशेषताएं :- 
इसका शरीर गहरा, पैर छोटे एवं त्वचा ढीली होती है | शरीर का रंग सामान्य: लाल, पिला लाल तथा हल्के भूरे से लेकर गहरा भूरा होता है | सींग मोटे तथा आकार में छोटे, जमीन को छूती लम्बी पूंछ तथा (dewlap) गलक्म्बल अत्यधिक गहरा तथा विकसित होता है तथा न्र पशु में नेवल सीथ लटक्दार होती है | नर पशु का सामन्य वजन ५२२ किलोग्राम तथा मादा पशु का सामन्य वजन 340 किलोग्राम होता है | 
उत्पादन विशेषताएं :- 
यह उन्नत डेयरी नस्लों में से एक है | इसका औसत दूध उत्पादन 300 दिन के दुग्ध श्रवण काल में 2150 किलोग्राम होता है जबकि कुछ सुव्यवस्थित फार्मों पर इसका दुश उत्पादन 4000 से 5000 लीटर प्रति ब्यांत तक आँका गया है | प्रथम ब्यात की औसत उम्र 37 से 48 माह तथा दो ब्यात का औसत अंतर 430 से 580 दिन होता है | वर्तमान में साहीवाल नस्ल की गाय तेजी से विलुप्त होती जा रही है| 
इसकी विलुप्त होने के प्रमुख कारण है :-

  • देश भारतीय गौवंश की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अंधाधुंध क्रासव्रिडिंग |
  •  किसान का अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्लों के प्रति आकर्षित होना | 
  • डेयरी फार्मिंग का एक उधोग की तरह तेजी से विकसित होना | 
  • अच्छे आहार तथा चारे की कमी |
  • आनुवांशिक रूप से उत्कृष्ट जर्मप्लाजम की कमी | 
  • नस्ल सुधार एवं संरक्षण में लगी विभिन्न एजेंसियों के अलग थलग प्रयास | 
  • नस्ल सुधार एवं उनके संरक्षण में जुडी गौशाला , मठों एवं गैर सरकारी संस्थाओं को सिमित वित्तीय सहयोग |

संरक्षण के उपाय :- 

  • राज्यों को अपनी ब्रीडिंग पॉलिसी में सुधार करते हुये देशी नस्लों के संरक्षण की और ध्यान देना चाहिए तथा देशी नस्लों की क्रास ब्रीडिंग को बन्द करना चाहिए | 
  • देश में साहीवाल नस्ल के विशेष प्रजनन कार्यक्रम को लागु करना चाहिए |
  • साहीवाल नस्ल के संरक्षण में लगी विभिन्न गौशाला, धार्मिक मठों एवं गैर सरकारी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग एवं प्रोत्साहित करना | 
  • जो किसान साहीवाल नस्ल के संरक्षण में लगे हुये है उन्हें उचित परुस्कार देकर सम्मानित करना चाहिए | 
  • कृत्रिम गर्भधान, एम्बरियो ट्रान्सफर टेकनालजी एवं प्रोजेनी टेस्टिंग तकनीक का साहीवाल नस्ल के संरक्षण में इस्तेमाल | 
  • फ्रोजन सीमेन तथा फ्रोजन एम्बरियो वाले नेशनल जिन बैंक का निर्माण |