Submitted by Shanidham Gaushala on 24 Mar, 2019
आज गौ रक्षा का अर्थ अधिकांश लोग सिर्फ गौ माता को बचाने से समझाते है और अधिकतर लोगों के लिए सिर्फ एक धार्मिक मुद्दा है, जबकि ऐसा नहीं है, गौ रक्षा सिर्फ किसी एक धर्म या संप्रदाय से जुड़ा विषय नहीं है बल्कि ये पुरे मानव समाज के अस्तित्व की लड़ाई है। क्षमा मांगते हुए कहना चाहूंगा कि आज तक जितने भी महान लोगां ने या
संतो ने जब भी गौ रक्षा की बात की तो उन्होंने इसे व्यापक अर्थ देने की बजाय सिर्फ धर्म की परिधि तक सीमित रखा। जिससे यह विषय एक सीमित दायरे में सिमट गया और जन मानस तक वास्तविक संदेश नही पहुंच पाया। मेरी अपनी दृष्टि में गौ रक्षा सिर्फ किसी एक प्राणी के बचाव का मुद्दा नही है, ये सिर्फ हम सनातनी लोगो की माता के प्राणों की रक्षा की लड़ाई नही है, ये पुरे मानव समाज, राष्ट्र और प्रत्येक वयक्ति के जीवन मरण का प्रश्न है। गौ रक्षा प्रत्येक व्यक्ति को बचाने की लड़ाई है, जब समाज में गौ माता की रक्षा होगी, गौ आधारित कृषि और व्यापार होंगे, गौ माता के दूध, दही, घी और पंचगव्य से निर्मित चीजों का सेवन होगा तभी व्यक्ति के सद्चरित्र का निर्माण होगा। सद्चरित्र लोगों से एक सभ्य और सुसंस्किरित समाज का निर्माण होगा। प्राचीन भारत की धर्म और अर्थ व्यवस्था गौ पर ही निर्भर थी। घरों में फर्श लेपने और खाना पकाने से लेकर औषधियों और कृषि भूमि से लेकर वाहन के रूप में गौ की भूमिका सर्वोपरि रही है। गौ पालन एवं सेवा व्यर्थ के भोगो से बचाती है और संतुष्ठता प्रदान करती है जिससे गौ पालक चरित्रवान और सेवानिष्ट होता है। अतः वह समाज के प्रति जागरूक और
सही मार्ग को प्रकाशित करने वाला होता है। अतः गौ धर्म अर्थ काम मोक्षदायिनी है। आधुनिक स्थिति में मानव गौ को ही भूल चुका है। प्रत्यक्ष देवता को न पूज के मूर्तियों और ढोंग में फंसा है। यह जानना आवश्यक है प्रकृति में उपलब्ध वस्तुएं ही वास्तविक देवता (वृक्ष , जलाशय , मेघ , पर्वत , प्राणी , पंचभूत , उर्जा एवं गौ) है। इन कृतियों का शोषण और मलीन करना प्राकर्तिक आपदाओं को निमंत्रण देना है। भारत का प्रत्येक नागरिक अगर गौ प्रेमी हो और वह अपना कुछ समय और आय का भाग गौ वर्धन में नियोजित करे तो इस देश का और उस गौ प्रेमी का उठान सुनिश्चित है। धर्म ग्रंथो में गाय को माता के रूप में पूजने का एक उद्देश्य था क्योंकि गाय के दूध, गोबर, मूत्र सभी मानव स्वास्थ्य के लिये लाभदायक हैं। सभी वस्तुए दवा में भी प्रयोग की जाती हैं। अतः आम जनता को गाय के पूजने का कारण बताना, उनका उपयोग करने के लिये प्रेरित करना आवश्यक है। सिर्फ गाय को माता मानकर पूज लेने से कोई भला नहीं होने वाला है। सिर्फ आस्था के नाम पर धन बटोरना जनता के साथ धोका है। एक सभ्य समाज एक समृद्ध और चरित्रवान राष्ट्र का निर्माण करेगा और ऐसे चारित्रिक और वास्तविक प्रगतिशील राष्ट्र से एक सुखी, भेदभाव रहित दुनिया बनेगी और उससे हमारे सनातन धर्म के मूल वाक्य की सार्थकता सिद्ध होगी – वसुधैवा कुटुम्बकम्। इसलिए ध्यान रहे गौ रक्षा सिर्फ एक प्राणी की नहीं वरन् पुरे समाज, राष्ट्र और संसार के रक्षा की लड़ाई है। अब जीवन का बस मंत्र यही – मम दीक्षा गौ रक्षा।
गौ सेवा के चमत्कार
अनादिकाल से मानवजाति गौ माता की सेवा कर अपने जीवन को सुखी, सम्रद्ध, निरोग, ऐश्वर्यवान एवं सौभाग्यशाली बनाती चली आ रही है। गौ माता की सेवा के माहात्म्य से शास्त्र भरे पड़े है। आइए शास्त्रों की गौ महिमा की कुछ झलकियां देखे –
गौ को घास खिलाना पुण्यदायी
तीर्थ स्थानों में जाकर स्नान दान से जो पुन्य प्राप्त होता है, ब्राह्मणों को भोजन कराने से जिस पुन्य की प्राप्ति होती है, सम्पूर्ण व्रत-उपवास, तपस्या, महादान तथा हरी की आराधना करने पर जो पुन्य प्राप्त होता है, सम्पूर्ण प्रथ्वी की परिक्रमा, सम्पूर्ण वेदों के पढ़ने तथा समस्त यज्ञों के करने से मनुष्य जिस पुन्य को पाता है, वही पुन्य बुद्धिमान पुरुष गौ माता को खिलाकर पा लेता है।
गौ सेवा से वरदान की प्राप्ति
जो पुरुष गौ माता की सेवा और सब प्रकार से उनका अनुगमन करता है, उस पर संतुष्ट होकर गौ माता उसे अत्यंत दुर्लभ वर प्रदान करती है।
गौ सेवा से मनोकामनाओं की पूर्ति
गौ की सेवा यानी गाय को चारा डालना, पानी पिलाना, गाय की पीठ सहलाना, रोगी गाय का ईलाज करवाना आदि करने वाले मनुष्य पुत्र, धन, विद्या, सुख आदि जिस-जिस वस्तु की ईच्छा करता है, वे सब उसे प्राप्त हो जाती है, उसके लिए कोई भी वस्तु दुर्लभ नहीं होती। भगवान् शिव कहते है- हे पार्वती! सम्पूर्ण जगत में गौ माता श्रेष्ठ है। वे लोगों को जीविका देने के कार्य में प्रवृत हुई है। वे मेरे अधीन है और चन्द्रमा के अमृतमय द्रव से प्रकट हुई है। वे सौम्य, पुन्मयी, कामनाओं की पूर्ति करने वाली तथा प्राणदायिनी है। इसलिए पुन्य प्राप्ति की इच्छा करने वालों को सदैव गौ की पूजा, सेवा (घास आदि खिलाना, पानी पिलाना, रोगी गाय का ईलाज कराना आदि) करनी चाहिए।
भूमि दोष समाप्त होते है
गौ माता का समुदाय जहां बैठकर निर्भयतापूर्वक सांस लेता है, उस स्थान की शोभा को बड़ा देता है और वह के सारे पापांे को खीच लेता है।
सबसे बड़ा तीर्थ गौ सेवा
देवराज इंद्र कहते है- गौ में सभी तीर्थ निवास करते है। जो मनुष्य गाय की पीठ छूता है और उसकी पूछ को नमस्कार करता है वह मानो तीर्थो में तीन दिनों तक उपवास पूर्वक रहकर स्नान कर लेता है।
गोपूजा-विष्णुपूजा
भगवान् विष्णु देवराज इन्द्र से कहते है के हे देवराज! जो मनुष्य अश्वत्थ वृक्ष, गौरोचन और गौ की सदा पूजा सेवा करता है, उसके द्वारा देवताओं, असुरों और मनुष्यों सहित सम्पूर्ण जगत की भी पूजा हो जाती है। उस रूप में उसके द्वारा की हुई पूजा को मई यथार्थ रूप से अपनी पूजा मानकर ग्रहण करता हूं।
गौ धूली महान पापों की नाशक है
गायों के खुरो से उठी हुई धूलि, धान्यांे की धूलि तथा पुट के शरीर में लगी धूलि अत्यंत पवित्र एवं महापापों का नाश करने वाली है।
गौ दर्शन के लाभ
गौ के दर्शन, पूजन, नमस्कार, परिक्रमा, गाय को सहलाने, गोग्रास देने तथा जल पिलाने आदि सेवा के द्वारा मनुष्य दुर्लभ सिधियां प्राप्त होती है।
गौ सेवा से जल्द पूरी होती है मनोकामनाएं
गाय के शरीर में सभी देवी-देवता, ऋषि-मुनि, गंगा आदि सभी नदियां तथा तीर्थ निवास करते है। इसीलिय गौ सेवा से सभी की सेवा का फल मिल जाता है।
गौ को प्रणाम करने से – धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चारों की प्राप्ति होती है। अतः सुख की इच्छा रखने वाले बुद्धिमान पुरुष को गायों को निरंतर प्रणाम करना चाहिए। ऋषियों ने सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रथम किया जाने वाला धर्म गौ सेवा को ही बताया है। प्रातःकाल सर्वप्रथम गाय के दर्शन करने से जेवण उन्नत होता है। यात्रा पर जाने से पहले गाय के दर्शन करके जाने से यात्रा मंगलमय होती है। जिस स्थान पर गाये रहती है, उससे काफी दूर तक का वातावरण शुद्ध एवं पवित्र होता है, अतः गोपालन करना चाहिए। भगवान् विष्णु भी गौ सेवा से सर्वाधिक प्रसन्न होते है, गौ सेवा करने वाले को अनायास ही गोलोक की प्राप्ति हो जाती है। प्रातःकाल स्नान के पश्चात अर्व्प्रथम गाय का स्पर्श करने से पाप नष्ट होते है।
गौ दुग्ध – धरती का अमृत
गाय का दूश धरती का अमृत है। विश्व में गौ दुग्ध के सामान पौष्टिक आहार दूसरा कोई नहीं है। गाय के दूध को पूर्ण आहार माना गया है। यह रोगनिवारक भी है। गाय के दूध का कोई विकल्प नहीं है। यह एक दिव्य पदार्थ है। वैसे भी गाय के दूध का सेवन करना गौ माता की महान सेवा करना ही है, क्योकि इससे गौ पालन को बढ़ावा मिलता है और अप्रत्यक्ष रूप से गाय की रक्षा ही होती है। गाय के दूध का सेवन कर गौ माता की रक्षा में योगदान तो सभी दे ही सकते है।
पंचगव्य
गाय के दूध, दही, घी, गौबर रस, गौ-मूत्र का एक निश्चित अनुपात में मिश्रण पंचगव्य कहलाता है। पंचगव्य का सेवन करने से मनुष्य के समस्त पाप उसी प्रकार भस्म हो जाते है, जैसे जलती आग से लकड़ी भस्म हो जाती है। मानव शरीर का ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका पंचगव्य से उपचार नहीं हो सकता। पंचगव्य से पापजनित रोग भी नष्ट हो जाते है। यदि उपर्युक्त सूत्रों को एक बार में अथवा एक या दो करके दूरदर्शन आदि प्रसार माध्यमों के द्वारा लिखा हुआ दिखाया जायें और अन्य विज्ञापनों की तरह दिन में अनेक बार और कुछ लम्बे समय तक विज्ञापनों को जारी रखा जायें तो थोड़े समय में देश में गौ क्रान्ती हो सकती है और यदि गो-दुग्ध सेवन के प्रचार को अधिक महत्त्व दिया जायें तो गौ वध तो अपने आप ही धीरे-धीरे बंद हो जायेंगा।