आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 28 Oct, 2020
साहिवाल भारतीय उपमहाद्वीप की एक उत्तम दुधारू नस्ल है जो कि उष्ण कटिबन्धीय जलवायु में अपनी दूध क्षमता के लिए सम्पूर्ण विश्व में विख्यात है | इस नस्ल का निर्यात अफ़्रीकी देशों के अलवा आस्ट्रेलिया तथा श्रीलंका में भी वहाँ की स्थानीय गायों की नस्ल सुधार के लिए किया गया है | यह नस्ल चिचडों तथा अन्य बाहय परजीवियों के प्रति प्रतिरोधी होती है | यह नस्ल गर्म जलवायु को आसानी से सहन कर सकती है |
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
19. कृष्णाबेली कर्नाटक के कृष्णा नदी के तटीय क्षेत्रों में पायी जानी वाली कृष्णाबेली गाय की नस्ल गिर, ओंगोल, कांकरेज, हल्लिकर नस्लों से ही विकसित की गई है। यह महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाके में भी पायी जाती है। इनके मुंह का अगला हिस्सा बड़ा और सिंगें सामान्य से छोटी और ऊपर में अंदर की ओर मुड़ी होती है। मस्तिष्क उभरा हुआ तथा दानों कान छोटे मगर नुकीले होते हैं। पूंछ जमीन को करीब-करीब छूती हुई काली होती है। गाय स्लेटी, भूरा और काले रंग की होती है, जबकि बैल गहरे रंग के होते हैं। यह औसत गायों की तरह ही दूध देती है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
20. जवरी कर्नाटक के बीजापुर और हुबली क्षेत्रों में पायी जाने वली जवारी प्रजाति की गायें छोटे कद की होती हैं। इनमें रोगों से लड़ने और विपरीत जलवायु को सहन करने की अच्छी क्षमता होती है। अर्थात इनको कोई बीमारी नहीं होती है। ये अलग-अलग रंगों में पायी जाती हैं। जैसे पूरी काली, भूरी या स्लेटी रंगों की होती हैं। थूथन का रंग भी गाढ़ा भूरा होता है। इसी तरह से खूर गाढ़े भूरे या स्लेटी होते हैं। सिर छोटे, मस्तक चैड़ाई लिए हुए और सिंगें फैली हुई छोटे आकर की होती हैं। छोटे पैरों के कारण इसके बौनेपन का आभास होता है। सामान्य मात्रा में दूध देती हैं।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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