आओ मिलकर एक सुनहरा भारत बनाएं गौरी (बेटी), गाय और गंगा को बचाएं
नई दिल्ली। गोपाष्टमी का सनातन धर्म में विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। यह त्योहार मुख्य रूप से गौ माता और भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और भक्ति को समर्पित है। गोपाष्टमी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन गौ माता और भगवान कृष्ण की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि यह दिन भगवान कृष्ण द्वारा गौ चराने की शुरुआत की गई थी। इस अवसर पर शनिवार को सिद्ध शक्तिपीठ शनिधाम में धूमधाम –असोला, फतेहपुर बेरी स्थित शनिधाम गौशाला में गोपाष्टमी का धूमधाम से इस महापर्व को मनाया गया।
Submitted by Shanidham Gaushala on 09 May, 2019
मानव-जाति के लिए गौ से बढ़कर उपकार करने वाली और कोई वस्तु नहीं है। गौ मानव जाति की माता के समान उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता देने वाली है। यह अनेक प्रकार से प्राणिमात्र की सेवा कर उन्हें सुख पहुँचाती है। इसके उपकार से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। यही कारण है कि हिन्दू जाति ने गाय को देवता और माता के सदृश्य समझ कर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना अपना प्रधान धर्म समझा है। गाय का महत्व प्रतिपादन करने वाले कुछ वेद मन्त्र और शास्त्र वचन नीचे उपस्थित करते हैं।
Submitted by Shanidham Gaushala on 09 Apr, 2019
आज भी गाय की उत्पादकता व उपयोगिता में कोई कमी नहीं आई है । केवल हमने अपनी जीवनशैली को प्राकृतिक आधार से हटाकर यन्त्राधारित बना लिया है । विदेशियों के अंधानुकरण से हमने कृषि को यन्त्र पर निर्भर कर दिया । यन्त्र तो बनने के समय से ही ऊर्जा को ग्रहण करने लगता है और प्रतिफल में यन्त्रशक्ति के अलावा कुछ भी नहीं देता । बैलों से हल चलाने के स्थान पर ट्रेक्टर के प्रयोग ने जहाँ एक ओर भूमि की उत्पादकता को प्रभावित किया है वहीं दूसरी ओर गोवंश को अनुपयोगी मानकर उसके महत्व को भी हमारी दृष्टि में कम कर दिया है । फिर यन्त्र तो ईंधन भी मांगते हैं ।
Submitted by Shanidham Gaushala on 07 Jul, 2019
14. वेचूर गौवंश की वेचूर प्रजाति केरल प्रदेश की है। छोटे कद की इस नस्ल की गाय को केरल में त्रिचूर जिला स्थित मनूथी में केरल कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया है, जिनकी संख्या बहुत ही कम है। वैसे इस नस्ल के ऊपर मध्य प्रदेश के सतना जिले में चित्रकूट स्थित दीनदयाल शोध संस्थान में विकासात्मक काम किया गया हैं। इस जाति की गायों पर जहां रोगों का प्रभाव बहुत ही कम पड़ता है, वहीं इस नस्ल की गायों के दूध में सर्वाधिक औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसे दुधारू श्रेणी की गायों में रखा जा सकता है। यहां तक कि इसके पालने में बहुत ही कम खर्च आता है, जो एक बकरी पालने के खर्च जैसा ही होता है। हल्के लाल, काले और सफेद रंगों के खूबसूरत मेल की इस नस्ल की गायों का सिर लंबा और संकरा होता है, जबकि सिंगें छोटी, पूंछ लंबी और ललाट कर्व लिए होती हैं। कान सामान्य लेकिन दिखने में आकर्षक होते हैं।
यज्ञ में सोम की चर्चा है जो कपिला गाय के दूध से ही तैयार किया जाता था। इसीलिए महाभारत के अनुशासन पर्व में गौमाता के विषय में विशेष चर्चाऐं हैं। गाय सभी प्राणियों में प्रतिष्ठत है, गाय महान उपास्य है। गाय स्वयं लक्ष्मी है, गायों की सेवा कभी निष्फल नहीं होती।
मित्रो! यज्ञ में प्रयुक्त होने वाले शब्द जिनसे देवताओं व पितरों को हवन सामग्री प्रदान की जाती है, वे स्वाहा व षट्कार गौमाता में स्थायी रूप से स्थित हैं। स्पष्ट है, यज्ञ स्थल गाय के गोबर से लीपकर पवित्र होता है। गाय के दूध, दही, घृत, गोमूत्र और गोबर से बने हुए पंचगव्य से स्थल को पवित्र करते हैं।
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