Submitted by Shanidham Gaushala on 17 Dec, 2025
गौशाला को हमारे शास्त्रों में देवमंदिर का दर्जा दिया गया है। जिस प्रकार देवमंदिर में देवताओं व देवियों की पूजा होती है, गौशालाओं में सर्वदेवमयी गौमाता की सेवा की जाती है। वेदों में भी गाय को देवी लक्ष्मी का प्रतिरूप कहा गया है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 17 Dec, 2025
धर्म प्राण भारत में एक ऐसा भी स्वर्णिम युग था जब घर-घर में गौमाता की पूजा-आरती हुआ करती थी। अखिल ब्रह्माण्ड नामक परब्रह्म परमात्मा भी भगवान राम-कृष्ण के रूप में अवतार लेकर अपने हाथों से गौमाता की सेवा-शूश्रुषा किया करते थे। गौमाता भगवान श्री कृष्ण की पूज्या और इष्ट देवी रही है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 17 Dec, 2025
प्राणी विज्ञान में स्पष्ट किया गया है कि गुरदों द्वारा रक्त का शोधन व छानने की प्रक्रिया संपन्न होती है और अवशिष्ट अंश मूत्रा के रूप में बाहर निलकता है। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि मूत्रा गुर्दे द्वारा छना हुआ रक्त का अंश होता है। चूंकि रक्त में प्राण-शक्ति निहित है, उसमें स्वर्ण-क्षार, ताम्र अंश एवं लौह अंश का सम्मिश्रण होता है।
Submitted by Shanidham Gaushala on 17 Dec, 2025
भारतीय संस्कृति का विस्तार असीम है। विश्व में भारतीय संस्कृति ही एक ऐसी संस्कृति है जिसमें मानव मात्रा ही नहीं, सृष्टि की सारी वस्तुओं को पूजनीय व नमस्कृत्य माना गया है। वेदों में इसका विस्तृत वर्णन है। शुक्ल यजुर्वेदीय रुद्राष्टाध्यायी के पंचम व अष्टम अध्याय व अन्य ग्रंथों में भी इसके प्रमाण भरे पड़े हैं।